मंगळवार, १७ मार्च, २०२०

देवी माँ

देवी माँ का प्राकट्य

#देवी_माँ का सर्वप्रथम दर्शन #ब्रह्माजी को हूवा था।#श्री_दूर्गासप्तशती के अनुसार ब्रह्माजीने सृष्टी बनवानेके लिए सर्वप्रथम पृथ्वीपर वातावरणकी निर्मिती की।उस वातावरण की वजहसे पृथ्वीपर दो भयावह राक्षसोंकी उत्त्पती हूयी उनके नाम #मधू _और_कैटभ कहे गये है।वे दो राक्षस ब्रह्माजीसेभी अधिक शक्तिशाली हूये।अन्नकी तलाश मे मधू और कैटभ जलमय पृथ्वीपर भटकते हूये ,ब्रह्माजीकी और आए।उन्होने ब्रह्माजीको खा जाने के इरादेसे घेर लिया यह बात ब्रह्माजीने अपनी दिव्य शक्तिसे जान लीयी।यह दो राक्षस अपनेसे अधिक शक्तिवाले है यह जानकर ब्रह्माजी उनके घेरेसे अपने आपको बचाते हूये ,अपने आराध्य #श्री_हरी_विष्णू के पास भागे ।जब ब्रह्माजी #श्री_हरी के पास पहूंचे तब श्री हरी अपनी शेषनागकी शय्यापर #योगनिंद्रा मे सोये हूये थे,ब्रह्माजी व्याकूल हूये की अब मै इन्हे कैसे जगाऊ ये तो सबके ईश्वर है प्रभू है।मधू कैटभ का अपनी ओर आता संकट देख ब्रह्माजी घबराये हूये थे,फीर ब्रह्माजी ने सोचा की जो सबके #ईश्वर श्रीहरी है ,तो उन्हे सुलानेवाली यह योगनिंद्रा कीतनी बडी #शक्ती हो सकती है,यह सोच कर ब्रह्माजीने योगनिंद्राका माँ कहकर आवाहन,पूजन किया ।ब्रह्माजीकी आर्त पूकार सूनकर माँ योगनिंद्रा उनके सामने प्रगट होकर आशीर्वाद देने लगी की मै श्रीहरी को जगाती हू।वे ही इन दोनो राक्षसोंका अंत कर देंगे।तूम्हारा संकट दूर हो जाएगा।और #देवी ने श्रीहरीको जगाया तब उन्होने मधू और कैटभ के साथ अनेको वर्ष युद्ध कीया ,तब माँ योगनिंद्रा की कृपासे राक्षसोकी बुद्धी हर ली गयी, राक्षसोने श्रीहरी से कहा की बहूतही समय से तूम हमारे साथ युद्ध कर रहे हो हम प्रसन्न हूये है ,तूम्हे हम जो चाहो #वरदान देंगे,तो श्री हरीने कहा,ठीक है मूझे वरदान दो की तूम दोनो मेरे हाथो मारे जाओगे।उसके बाद श्रीहरीने अपने चक्रसे मधूऔर कैटभ को मार गीराया,ब्रह्माजी का संकट दूर करवाया।यह देख रहे ब्रह्माजीने देवी मां के मन ही मन आभार व्यक्त किये ,उन्होने कहां की हे माँ आपही शक्ति हो,जो समूचे ब्रह्मांडको धारण करती हो,आप ही ओम कार स्वरूपीनी हो ,आपही जगत जननी हो,आपहीको सर्व ब्रह्मांडमे पूजा जाएगा,आपही के अनेको नाम होंगे जैसे #दूर्गा,#चंडी,#काली,आपही श्री दायीनी ,आपही #विद्या ,#धन दायीनी कहलाओगी माता आपको मेरा सादर प्रणाम है।
    

द्वापरयूग मे देवी माँ को भगवान विष्णूने पृथ्वीपर उनके बहनके रूपमे जन्मलेने को कहा ,भगवान बोले की हे देवी तूम पृथ्वीपर जन्म लो,जो भक्त तूम्हारा नित्य पूजन,प्रार्थना करेंगे ,जो भक्त तूमहे आदरसे मांस,मदीरा और मिठे भोग लगाएंगे , तूम्हे काली,दूर्गा आदी नामोसे पूजेंगे उनकी, सर्व मनोकामनाए मै स्वयं पूर्ण करूंगा।तब माँ ने भगवान श्रीकृष्ण की बहन के रूपमे जन्म लिया उन्हे अत्याचारी कंसने देवकीकी आठवी संतान समझ मारना चाहा परंतू देवी माँ के बाल्य स्वरूपको जैसेही कंसने पटकाना चाहा, माता उसके हाथोंसे छूटकर आकाशकी और उडकर अपने पूर्ण स्वरूप मे प्रगट हूयी।देवीने कहां की हे कंस अब तुम्हे मारनेवाला जन्म ले चूका है,तूम्हारी मृत्यू अब दूर नही।देवी के अनेक हाथ और उनमे देवी ने पकडे हूये अनेको शस्त्र शूल,खड्ग,शंख,चक्रआदी देख कंस घबरा गया।बादमे अपनी बाल्यावस्थामेही श्रीकृष्णने कंस को मार गिराया।
      
देवी माँ चंडीकाने जब देवताओपर आया संकट निवारण के लिए रक्तबिज नामक मायावी राक्षस कि सेनाके साथ युद्ध किया तब उन्होने रक्तबिज को मार गिराया पर वह मायावी राक्षस अपने रक्तसे फिर बिज के भाती पेड जैसा जिवीत होकर फिरसे युद्ध करने लगा।माँ चंडीकाने अपने ललाटसे उग्र स्वरूपा देवी काली को प्रगट किया।जिन्होने रक्तबिजका सिर काटकर उसका रक्त प्राशान कर लिया,इस प्रकार रक्तबिज नष्ट हूआ।देवीने संपूर्ण राक्षसोका खात्माकरके देवताओंका संकट निवारण किया।
            जय मातादी!

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