शुक्रवार, २० मार्च, २०२०

भगवान श्री राम का जन्म (रामनवमी)

                        श्री राम जन्म                          

                          रामायण .1

     महर्षी वाल्मीकिजी को नारदमूनीने भगवान श्री राम का चरित्र कथन किया।

भगवान श्री हरी विष्णूके नाभिकमलसे ब्रह्मा उत्पन्न हूये।ब्रह्माजी के पूत्र मरीचि हूये,मरीचिसे कश्यपका जन्म हूवा।कश्यपसे सूर्य और सूर्य के वंश मे वैवस्वत मनु इनसे इक्ष्वाकु का जन्म हूवा।इक्ष्वाकु के पुत्र ककुत्स्थ उनके पुत्र रघू ,रघूके पुत्र अज ,अज के पुत्र दशरथ हूये,इन्हीके पुत्रके रूप मे श्रीहरीने अवतार लीया श्री राम का।

    राजा दशरथकी तीन रानीया थी कौसल्या,कैकेयीऔर सुमित्रा उन्होने पुत्रप्राप्तीके लीए यज्ञ करवाये,राजा दशरथने जब पूत्रप्राप्ती के लीए यज्ञ करवाना चाहा तब उन्होने बडे बडे विद्वानोसे जैसे वसिष्ठऋषी,बासुदेव,मंत्री सुमंत आदीसे सलाह ली और यज्ञ करवानेके लिए ऋश्यशृंग को नियुक्त किया उन्हे आदरपूर्वक बूलवाया गया,और यज्ञ की शुरूवात हूयी।ऋष्यशृंग महर्षी द्वारा यज्ञसे सिद्ध चरू के देनेसे तीनो रानीयोको पुत्र प्राप्ती हूयी,कौसल्यासे भगवान राम का जन्म हूवा,नवमी पर शुक्लपक्ष ,पुनर्वसु नक्षत्र में श्रीराम का जन्म हुआ था। श्रीराम के जन्म समय के दौरान ग्रहों की स्थिति बहुत शुभ थी। इस दिन पांच ग्रह - सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि अपनी उच्च राशि में स्थित थे। इन ग्रहों के शुभ प्रभाव से त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार यानी मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में ज्ञानी, तेजस्वी और पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ जो तिथी चैत्र नवमी के दिन दोपहर की है।दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले श्री हरी विष्णू के अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने आयुध थे, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
       कौसल्या माँ की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, यह सुख परम अनुपम होगा।  यह वचन सुनकर सर्व संसार के स्वामी विष्णू भगवान ने बालक रूप होकर रोना शुरू कर दिया। 
       बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए।कैकेयीसे भरत और सुमित्रासे लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नका जन्म हूवा।
   दशरथ एक महापराक्रमी राजा थे,उनका राज्य अयोध्या था जो शरयू नदी के किनारे था, वैसेही उनके चारो पुत्र पराक्रमी हूये,भगवान राम इनमे सबसे बडे थे।जो बचपनसेही बलवान और स्फूर्तीले थे,वो रथ चलाना,खड्ग चलाना बचपन मे ही सिख गये,उसके बाद महर्षी वसिष्ठ के आश्रममे चारो राजकूमारोंने विद्या प्राप्त की ।
    भगवान राम और लक्ष्मण के धनुषबान चलानेके अभ्यास और गतीसे महर्षी वसिष्ठ बहूत खूष थे।चारो भाई वेदों उपनिषदों के बहूत बड़े ज्ञाता बन गये गुरुकुल में अच्छे मानवीय और सामाजिक गुणों का उनमे संचार हुआ ,अपने अच्छे गुणों और ज्ञान प्राप्ति की ललक से वे सभी अपने गुरू के प्रिय बन गये।

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