शनिवार, २८ मार्च, २०२०

विक्रम बेताल कथा

विक्रम बेताल कथा 
"शरनिधि का शतरंज"
      
     अपनीही धुन का पक्का राजा विक्रम तांत्रिक के मंगवानेपर वह कलेवर लाने निकल पडा,पेडपर लटकाहूवा वह शव राजाने उतारकर अपने कंधेपर लिया और आगे चल पडा,तभी शव के भितर छिपा बेताल बोलने लगा,"राजा तूम्हे देखकर मुझे हसीही होती है,इतनी रात बितनेपर भी मेरे शव को अपने कंधोपर ढोये जा रहे हो ।थकान का नाम तक नही,पर तबभी मूझे शक होता है, यह तुम्हारा उपक्रम व्यर्थ ही जाएगा, क्योंकि कूछ लोग  कूछ क्रिडाओके बहूतही शौकीन हूवा करते है।शरनिधि भी एक शतरंज का शौकीन राजा था।

    शतरंज मके के खेल से   राजा शरनिधि को एक गंधर्व के हाथो फिरसे अपना यौवन मिलने वाला था पर उसने यह अच्छा अवसर हातोसे फीसला दिया,उसकी कहाणी तूम सून लो विक्रम राजा:
           राजा शरनिधि शतरंजका बहूतही शौकीन राजा हूवा करता था।अपने राज्य मे अनेको त्यवहारोपर राजा शतरंज की प्रतियोगिताए करवाता था।उसे खूदको तो कीतना भी माहिर शतरंज का खिलाड़ी कभी हरा न पाया था,वह हर रातके भोजनके बाद राजमहल मे शतरंजका खेल खेलता था। कभी महेमानोके साथ,तो कभी मंत्रियोके साथ और कोई न मिले तो, तो उस समय अपनी राणी प्रभावती के साथ देर रात तक शतरंजके फांसे फेंकते रहता थे।
        राणी प्रभावती साथ ही उनकी दो लडकीया वैजयंती और मेघना जो सुंदर और विवाह योग्य यूवतीया थी वे भी शतरंजमे हिस्सा लेती और चावसे खेला करतीथी।
एकदिन वह दोनो ही, राजमहलके उपवनमे पुरणिमाके दिन रातके समय शतरंज खेल रहीथी ,वैजयंतीने अच्छे फासे डालकर सामनेवाली मेघनाको हराया तभी उनके पीछेसे एक गंधर्व असली रूपसे प्रकट हूवा ।और वैजयंतीने जिस प्रकार से मेघनाको शतरंजमे हराया उसकी तारिफ करने लगा।उसे दोनो राजकूमारीया खडी हूयी,उन्होने गंधर्वसे कहा,"आप यहा तक कैसे आए,राजदरबारके उपवन को चारोऔरसे पहेरा होनेपरभी जबआप यहा आए,इसकी बडी सजा आपको मिलसकती है ",यह सूनकर गंधर्व बोले,"हे सूंदरीयो ,मै कोई मनुष्य नही मै गंधर्व हू ,मेरा नाम समिर है,आज इस पूर्णिमा के दिन मै आकाशकी सैर कर रहा था,जो मैने आप दोनोको आकाशमार्गसे शतरंज खेलते हूये देखा,शतरंजका खेल तो मेरा बहूतही प्रीय रहा है,मै अपने आपको रोक न पाया और शतरंज के खेल को देखने गुप्त रूपसे यहा उतरा हू।मेरा रथ भी मैने यह उपवनमेही उतारा है वह देखो,राजकुमारीयोने उस और देखा तो उन्हे बडाही सूंदर सूवर्ण का रथ दिखाई पडा जो बहूतही सूंदर था।राजकूमारीया आश्चर्य चकीत हूयी,तभी,गंधर्व  बोले ,"आपको अगर आपत्ति ना हो तो, मेरे साथ शतरंग खेलोगी,"वैजयंतीके हा कहनेपर खेल शूरू हूवा।दोनोने शतरंज खेलको रंगतदार बनाया आखिर कार गंधर्व से वैजयंती को हार माननी पडी। उसके बाद मेघनाभी गंधर्व के साथ शतरंज खेलने लग गयी और गंधर्व ने उसे दस चालोमे हरा दीया।दोनो राजकूमारीया गंधर्व को मिलकर बहूत खूष थी,"अगले पूर्णिमा के दिन मै फिर शतरंज खेलने आऊंगा "!,कहकर वह सूवर्ण रथपर आरूढ हूवा और देखतेही रथ आकाशकी और चला गया।

   जब राजकूमारीया महलमे आई तब उन्होंने सारा वृत्तांत अपने पिता राजा शरनिधि और माँ से कह सूनाया,जब अगली पूर्णिमा की रात होने आई तब दोनो राजकूमारीयोको उपवनमे शतरंज खेलनेको बैठाकर राजा और राणी दोनो पासवाले चमेलीलताओसे भरे वृक्ष के पिछे छिपे रहे,पहला प्रहर बिततेही वहा उपवनमे एक सूवर्ण रथ उतरा जिसमेसे वह गंधर्व समिर उतरा वह राजकूमारीयोके पास आता हूवा उस चमेलीलताओसे घीरे वृक्षके रुका जहा राजा और राणी छिपे थे,गंधर्व बोले, "शरनिधि ऐसे छिपनेकी क्या आवश्यकता है, तूम राणी समेत यहा आवो,और अगर आपत्ति ना हो तो मेरे साथ शतरंग खेल सकोगे?"तूरंतही राजाने हां कही।और वे दोनो गंधर्व के सामने आए,राजा और राणी  जिस आश्चर्य जनक बातको मनही मन सोचा करते थे वह आज प्रत्यक्षदर्शी थी।राजा शरनिधि और गंधर्व समिर एक दूसरेके सामने शतरंज खेलने चंद्रशिलाओपर बैठे तथा राणी प्रभावती और राजकूमारीया वैजयंती और मेघना भी बाजू वाली चंद्रशिलाओपर खेल देखने बैठ गयी।

  गंधर्व ,शतरंजकी गोटीयोको ठीक करते हूये बोले,"राजा देखो ,स्पर्धा कोई भी हो बाजी लगानेसेही मजा देती है!"
   राजा ने भी कहा,"हे गंधर्व शतरंजको जब आपकाही आमंत्रण है, 'तो मूझे हारना क्या होगा,'यह भी आपही कहे!मै तैयार हूँ"।
    गंधर्व ने कहा,"ठीक फिर मै हार जाउ तो ,तुम्हारी इस अधेड उमर मे फिर तूम्हे मेरी गंधर्व महीमासे युवक बना दुंगा जिससे तूम्हे दोबारा अपनी जवानी जीने मौका इस जीवनमे मिलेगा"।
    "और अगर मै जित जाऊ,तो तूम्हे इन दो राजकूमारीयोमेसे एक के साथ मेरा विवाह करवाना होगा"
     राजाने सोच लिया,दोनो तरफसे अपनाही फायदा होगा,हारे तो किसीको नसीब न होनेवाला दामाद मिलेगा,और जित जावू तो फिरसे जवानी प्राप्त होगी,यह सोच राजाने हां कह दिया।
    राणी सोचमे डूब गयी की जब राजा युवक बनेंगे तो उनकी अपने आपही दूर्दशा होतीही रहेंगी,राजा तो नई शादीभी रचाएंगे,जिसका कोई इलाज न कर सकेगा
    राजकूमारीया गंधर्व से, पाणिग्रहन को एक दूसरीसे अधिक सूंदर और योग्य समझने लग गयी
    खेल भी शूरू हूवा, इतनेमे वहा एक और रथ आकाशमार्गसे आकर उपवनमे उतरा जिसमेसे एक सूंदर औरत निकलकर वहा आयी जहा शतरंज की बाजी शूरू थीउसने राजा को देखते हूये कहा कि," मै इस गंधर्व समिर की पत्नी हू ,मै देखने आई हू काई ऐसी कोणसी सूंदरी जमीन पर जन्मी है जिसके सौदर्य पर मोहित होकर यह गंधर्व शादी रचानेकी लालसा लिए यहा वहा घूमता फिर रहा है ।"
     देखतेही देखते राजाने आखिर कार गंधर्व को हरा दीया ।अब बाजी हारेहूये गंधर्व ने कहा,राजा शरनिधि मै हारा हू और तूम बाजी जीत गये हो तब तूम्हे मै अपनी महिमा शक्ति से तूम्हे युवक कर देता हू,जैसेही वह गंधर्व अपने मंत्र बोलने लग गया तभी  राजा शरनिधि ने युवक अवस्था लेनेको साफ इनकार कर दिया।
    यह कहानी सूनाकर बेतालने राजा विक्रमादित्य से कहा,"बोलो राजा,उस शरनिधि राजाकी मूर्खता को तूम क्या कहोगे,हात मे आया यौवन मिलनेका मौका उसने गवाया,शतरंजकी बाजीने उसे बहूत कुछ दिया,दोनो ही तरफसे चाहे हार हो या जीत पर अब उसने यौवन लेनेको इंनकार करके कोणसी संदिग्धता दिखाई?
  "मेरे प्रश्न का उत्तर दो विक्रमादित्य, वरना तुम्हारे सिरके तूकडे-तूकडे हो जाएंगे? "

     बेतालकी शंकाए पहचानकर विक्रमादित्य बोला,"जरूर ही राजा  शरनिधि मानव सहज दुर्बलता का शिकार हूवा,दोनोही तरफ के फायदोको देखकर अगर वह हारता,तो ,अपनी लडकीकी शादी गंधर्व से करवाकर पछताता क्योंकि गंधर्व का भेद गंधर्व पत्नी ने राजा शरनिधि को खोल दिया था।"
     "वह जित गया,उसने यौवन लेनेको इनकार किया,यह उसने अपनी राणी प्रभावती के मन की बात ताड ली,राणी का क्या होता,वह दो राजपूत्रीया वैजयंती और मेघना अपने पिता को युवक होता देख क्या  महसूस करती? उनका भविष्य और शादी यह बातो को क्या  अडचने आती?"
       यह सूनकर बेताल झपटसे उडकर ,विक्रमादित्य के कंधोपरसे फिर उसी पेढपर जा लटका,जहा से विक्रमादित्य ने लाया था।

लेबल: , , , ,

शुक्रवार, २० मार्च, २०२०

भगवान श्री राम का जन्म (रामनवमी)

                        श्री राम जन्म                          

                          रामायण .1

     महर्षी वाल्मीकिजी को नारदमूनीने भगवान श्री राम का चरित्र कथन किया।

भगवान श्री हरी विष्णूके नाभिकमलसे ब्रह्मा उत्पन्न हूये।ब्रह्माजी के पूत्र मरीचि हूये,मरीचिसे कश्यपका जन्म हूवा।कश्यपसे सूर्य और सूर्य के वंश मे वैवस्वत मनु इनसे इक्ष्वाकु का जन्म हूवा।इक्ष्वाकु के पुत्र ककुत्स्थ उनके पुत्र रघू ,रघूके पुत्र अज ,अज के पुत्र दशरथ हूये,इन्हीके पुत्रके रूप मे श्रीहरीने अवतार लीया श्री राम का।

    राजा दशरथकी तीन रानीया थी कौसल्या,कैकेयीऔर सुमित्रा उन्होने पुत्रप्राप्तीके लीए यज्ञ करवाये,राजा दशरथने जब पूत्रप्राप्ती के लीए यज्ञ करवाना चाहा तब उन्होने बडे बडे विद्वानोसे जैसे वसिष्ठऋषी,बासुदेव,मंत्री सुमंत आदीसे सलाह ली और यज्ञ करवानेके लिए ऋश्यशृंग को नियुक्त किया उन्हे आदरपूर्वक बूलवाया गया,और यज्ञ की शुरूवात हूयी।ऋष्यशृंग महर्षी द्वारा यज्ञसे सिद्ध चरू के देनेसे तीनो रानीयोको पुत्र प्राप्ती हूयी,कौसल्यासे भगवान राम का जन्म हूवा,नवमी पर शुक्लपक्ष ,पुनर्वसु नक्षत्र में श्रीराम का जन्म हुआ था। श्रीराम के जन्म समय के दौरान ग्रहों की स्थिति बहुत शुभ थी। इस दिन पांच ग्रह - सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि अपनी उच्च राशि में स्थित थे। इन ग्रहों के शुभ प्रभाव से त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार यानी मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में ज्ञानी, तेजस्वी और पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ जो तिथी चैत्र नवमी के दिन दोपहर की है।दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए। मुनियों के मन को हरने वाले श्री हरी विष्णू के अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गई। नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था, चारों भुजाओं में अपने आयुध थे, दिव्य आभूषण और वनमाला पहने थे, बड़े-बड़े नेत्र थे। इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
       कौसल्या माँ की वह बुद्धि बदल गई, तब वह फिर बोली- हे तात! यह रूप छोड़कर अत्यन्त प्रिय बाललीला करो, यह सुख परम अनुपम होगा।  यह वचन सुनकर सर्व संसार के स्वामी विष्णू भगवान ने बालक रूप होकर रोना शुरू कर दिया। 
       बच्चे के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सब रानियाँ उतावली होकर दौड़ी चली आईं। दासियाँ हर्षित होकर जहाँ-तहाँ दौड़ीं। सारे पुरवासी आनंद में मग्न हो गए।कैकेयीसे भरत और सुमित्रासे लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नका जन्म हूवा।
   दशरथ एक महापराक्रमी राजा थे,उनका राज्य अयोध्या था जो शरयू नदी के किनारे था, वैसेही उनके चारो पुत्र पराक्रमी हूये,भगवान राम इनमे सबसे बडे थे।जो बचपनसेही बलवान और स्फूर्तीले थे,वो रथ चलाना,खड्ग चलाना बचपन मे ही सिख गये,उसके बाद महर्षी वसिष्ठ के आश्रममे चारो राजकूमारोंने विद्या प्राप्त की ।
    भगवान राम और लक्ष्मण के धनुषबान चलानेके अभ्यास और गतीसे महर्षी वसिष्ठ बहूत खूष थे।चारो भाई वेदों उपनिषदों के बहूत बड़े ज्ञाता बन गये गुरुकुल में अच्छे मानवीय और सामाजिक गुणों का उनमे संचार हुआ ,अपने अच्छे गुणों और ज्ञान प्राप्ति की ललक से वे सभी अपने गुरू के प्रिय बन गये।

लेबल: , , , , ,

मंगळवार, १७ मार्च, २०२०

देवी माँ

देवी माँ का प्राकट्य

#देवी_माँ का सर्वप्रथम दर्शन #ब्रह्माजी को हूवा था।#श्री_दूर्गासप्तशती के अनुसार ब्रह्माजीने सृष्टी बनवानेके लिए सर्वप्रथम पृथ्वीपर वातावरणकी निर्मिती की।उस वातावरण की वजहसे पृथ्वीपर दो भयावह राक्षसोंकी उत्त्पती हूयी उनके नाम #मधू _और_कैटभ कहे गये है।वे दो राक्षस ब्रह्माजीसेभी अधिक शक्तिशाली हूये।अन्नकी तलाश मे मधू और कैटभ जलमय पृथ्वीपर भटकते हूये ,ब्रह्माजीकी और आए।उन्होने ब्रह्माजीको खा जाने के इरादेसे घेर लिया यह बात ब्रह्माजीने अपनी दिव्य शक्तिसे जान लीयी।यह दो राक्षस अपनेसे अधिक शक्तिवाले है यह जानकर ब्रह्माजी उनके घेरेसे अपने आपको बचाते हूये ,अपने आराध्य #श्री_हरी_विष्णू के पास भागे ।जब ब्रह्माजी #श्री_हरी के पास पहूंचे तब श्री हरी अपनी शेषनागकी शय्यापर #योगनिंद्रा मे सोये हूये थे,ब्रह्माजी व्याकूल हूये की अब मै इन्हे कैसे जगाऊ ये तो सबके ईश्वर है प्रभू है।मधू कैटभ का अपनी ओर आता संकट देख ब्रह्माजी घबराये हूये थे,फीर ब्रह्माजी ने सोचा की जो सबके #ईश्वर श्रीहरी है ,तो उन्हे सुलानेवाली यह योगनिंद्रा कीतनी बडी #शक्ती हो सकती है,यह सोच कर ब्रह्माजीने योगनिंद्राका माँ कहकर आवाहन,पूजन किया ।ब्रह्माजीकी आर्त पूकार सूनकर माँ योगनिंद्रा उनके सामने प्रगट होकर आशीर्वाद देने लगी की मै श्रीहरी को जगाती हू।वे ही इन दोनो राक्षसोंका अंत कर देंगे।तूम्हारा संकट दूर हो जाएगा।और #देवी ने श्रीहरीको जगाया तब उन्होने मधू और कैटभ के साथ अनेको वर्ष युद्ध कीया ,तब माँ योगनिंद्रा की कृपासे राक्षसोकी बुद्धी हर ली गयी, राक्षसोने श्रीहरी से कहा की बहूतही समय से तूम हमारे साथ युद्ध कर रहे हो हम प्रसन्न हूये है ,तूम्हे हम जो चाहो #वरदान देंगे,तो श्री हरीने कहा,ठीक है मूझे वरदान दो की तूम दोनो मेरे हाथो मारे जाओगे।उसके बाद श्रीहरीने अपने चक्रसे मधूऔर कैटभ को मार गीराया,ब्रह्माजी का संकट दूर करवाया।यह देख रहे ब्रह्माजीने देवी मां के मन ही मन आभार व्यक्त किये ,उन्होने कहां की हे माँ आपही शक्ति हो,जो समूचे ब्रह्मांडको धारण करती हो,आप ही ओम कार स्वरूपीनी हो ,आपही जगत जननी हो,आपहीको सर्व ब्रह्मांडमे पूजा जाएगा,आपही के अनेको नाम होंगे जैसे #दूर्गा,#चंडी,#काली,आपही श्री दायीनी ,आपही #विद्या ,#धन दायीनी कहलाओगी माता आपको मेरा सादर प्रणाम है।
    

द्वापरयूग मे देवी माँ को भगवान विष्णूने पृथ्वीपर उनके बहनके रूपमे जन्मलेने को कहा ,भगवान बोले की हे देवी तूम पृथ्वीपर जन्म लो,जो भक्त तूम्हारा नित्य पूजन,प्रार्थना करेंगे ,जो भक्त तूमहे आदरसे मांस,मदीरा और मिठे भोग लगाएंगे , तूम्हे काली,दूर्गा आदी नामोसे पूजेंगे उनकी, सर्व मनोकामनाए मै स्वयं पूर्ण करूंगा।तब माँ ने भगवान श्रीकृष्ण की बहन के रूपमे जन्म लिया उन्हे अत्याचारी कंसने देवकीकी आठवी संतान समझ मारना चाहा परंतू देवी माँ के बाल्य स्वरूपको जैसेही कंसने पटकाना चाहा, माता उसके हाथोंसे छूटकर आकाशकी और उडकर अपने पूर्ण स्वरूप मे प्रगट हूयी।देवीने कहां की हे कंस अब तुम्हे मारनेवाला जन्म ले चूका है,तूम्हारी मृत्यू अब दूर नही।देवी के अनेक हाथ और उनमे देवी ने पकडे हूये अनेको शस्त्र शूल,खड्ग,शंख,चक्रआदी देख कंस घबरा गया।बादमे अपनी बाल्यावस्थामेही श्रीकृष्णने कंस को मार गिराया।
      
देवी माँ चंडीकाने जब देवताओपर आया संकट निवारण के लिए रक्तबिज नामक मायावी राक्षस कि सेनाके साथ युद्ध किया तब उन्होने रक्तबिज को मार गिराया पर वह मायावी राक्षस अपने रक्तसे फिर बिज के भाती पेड जैसा जिवीत होकर फिरसे युद्ध करने लगा।माँ चंडीकाने अपने ललाटसे उग्र स्वरूपा देवी काली को प्रगट किया।जिन्होने रक्तबिजका सिर काटकर उसका रक्त प्राशान कर लिया,इस प्रकार रक्तबिज नष्ट हूआ।देवीने संपूर्ण राक्षसोका खात्माकरके देवताओंका संकट निवारण किया।
            जय मातादी!