विक्रम बेताल कथा , क्रूद्ध देवी
विक्रम बेताल कथा,क्रूद्ध देवी
फीरसे एक बार राजा जंगलोसे होकर स्मशान पहूचा।उसने बरगद के पेडपर से शव निकालकर अपने कंधेपर लेकर चलता बना।राजा विक्रम को चलता देख शव मेंंसे बेताल बोल पडा,
"हे विक्रम राजा,समझ मे नहींं आता। तूम आधी रात को आराम करणा छोड, यह क्यांं उद्योग कर रहे हो।ऐसी कौनसी देवता को तूम संतुष्ट करवाना चाहते हो।सत्य तो यह है,कि मनुष्योके भक्ति से कयी बार देवता गुस्सा भी होते आएंं है।फीर भी बिना कारण तूम कष्ट क्यूं लिए जा रहे हो।"
विक्रम राजा को चूप चाप देखकर,बेताल ने 'क्रूध्द देवी' की कहाणी सूनानी शूरु की।
एक बार यम के किंकर एक पापी को नरकलोक मे सजा दे रहे थे,पापी को किलोंपरसे चलवाया गया,तपती रेत पर चलवाया गया और तपती धूप मे उसे छोडकर वह चले गये।आकाश मार्ग से स्वर्ग जा रही एक देवी यह देख रही थी।उससे पापी का वह दर्द देखा न गया।वह नरकलोक उतरी और पापी के पैरोंंमेसे अपने हाथोंसे देवीने किंंले निकाले।पापी का दर्द तो कम हूआ,पर देवी के हाथ काले रंग के हो गये।उसने अपने हाथ धोयेंं। और भी बहूत कोषीषे की पर हाथ कालेंं के कालें ही रहे।
जब यह बांंत देवी देवताओंंके राजा इंद्र को मालूम हुयी।तब उसने देवीको हात काले होनेका कारण पूंछा,तो देवीने नरकलोक की बात ,सारी इंद्र को सुनायी।और हाथोसे काला रंग निकालनेकी इंद्र से बिनती करने लगी।उसपर इंद्र ने कहा,"देवी यह तुम्हारे हाथोंंपर लगा हूआ कालारंग नरकलोक का मैल है,तुमने यम द्वारा पापीयोंंको दिये जाने वाले दंड मे रूकावट की ,इसीकारण ऐसा हूआ।अब तूम्हे प्रायश्चित करणा होगा ,तब यह काला रंग अपनेआप निकल जाएंंगा।"
देवी यह सूनकर ,इंद्र से प्रायश्चित्त पूछने लगी।तब इंद्र ने कहा,"देवी तूम्हेंं मानवलोक रहकर इन्ही काले हाथोंंसे मोची की चप्पलेंं सिलवानी होगी,जब हजार चप्पले इन हाथोंंसे सियी जाएगी तब यह काला रंग निकल जाएगा,और तूम स्वर्ग आंं सकोगी।"इसपर...
देवी मानवलोक आयी,उसने एक गरिब मोची के घर गुप्तरूप मे पनाह ली।रात के समय मोची के घर ,जीस कमरेंंमे वह चप्पले बनाया करता था ,वहांं पडे चमडे,धागे और औजारोंंसे देवीने सूंदर चप्पले बनायी और गुप्त होंं गयी।
सूबह जब मोची उस कमरे मेंं आया तो वह हैराण हुआ,क्योंंकी वहांं सारे चमडे की अच्छी अच्छी चप्पले तयांंर थी।वह चप्पले मोची बाजार ले गया ।उसे उन चप्पलोंं को बेचकर बहूत धन मिला।उसने और चमडांं खरिदा। और उसी रख दिया।
रात के समय देवी ने पूरे चमडेकी अच्छी अच्छी चप्पले सिलवायी, और वह गायब हो गयी।
मोची ने जब यह चमत्कार फिरसे देखा तो वह बहूत खूश हूआ।अब ऐसा हर रोज हो रहा था।उसका धन उन चप्पलो से रोज बढता गया।मोची हररोज चमडा,धागा लाकर रख देता था और सूबह तैयार चप्पले बाजार जाकर बेचता था,वह अच्छा धनवान हो गया था।
एक दिन मोची ने सोचा, जब देवीदेवता ने मूझे इतना सब दिया,तो मूझे भी देवता की क्रूतज्ञता करनी चाहीये।उस दिनसे उसने पूजाद्रव्य,चंदन,पुष्पहार, पुष्प,तांबूल,नैवेद्य से जहांं चप्पले बना करती थी ,वही पूजा करवानी शूरु की।
जब देवी ने पूजा स्विकार नही की,ऐसा देख कर मोची परेशान हुआ।उसने देवीकी और बढीया पूजा करणी शूरू की।इसबार बाकी पूजा सामग्री के साथ मोची ने दक्षिणा,नये वस्त्र आदी देवीकी पूजा मे अर्पण करके जोरोजोरोसे प्रार्थना की,"एक ही बार क्यों न हो ,पर मेरी पूजा स्विकारो"।
मोची की इन बातो से देवी उब गयी,और उसकी ही पूजा बढनेके कारण उससे क्रूध्द होकर ,उस मोचीका घर छोडकर चलीगयी।
देवी अब दूसरे मोचीके वहां गयी वहापर उसने,चप्पले सिलवायी और देवीकी हांथोसे हजार चप्पले बनी। तब देवीकी हांथो से काला रंग निकल गया,और वह स्वर्ग चली गयी।
इधर पहला मोची बहूत ही दूखी हूआ।उसके यहा देवी द्वारा चप्पले बननी बंद हो गयी थी।वह चिंता कर रहा था की,देवीने पूजा कबूल नही की।और आखिर मूझसे गलती क्या हुयी,यह सोच सोच कर वह बिमार रहने लगा।उसने खटीया पकड ली,और एक दिन वह मर गया।
यह कहाणी सूनाकर बेताल ने राजासे पूंछा की,"आखिर देवी ने पहले मोची के साथ ऐसा दूर्व्यवहार क्यूं किया?,मोची सेआखिर क्या गलती हूयी? जिसके कारण उसकी पूजा को देवी ने छूआ तक नही? उसे बेहाल करके छोड दिया।"
"वह मोची गरिब था।इसी कारण देवी उसके घर रूकी,जब देवीने उसका कल्याण किया तो उसके मन मे क्रूतज्ञता आना भी स्वभाविकही हूआ।फिर देवी ने ऐसा क्यूं किया?"बेताल सवाल करणे लगा।
इसपर राजा विक्रम ने कहा,"वह देवी किसीपर उपकार करणे नही आयी थी।वह अपना प्रायश्चित करणे आयी ,और चली गयी।"
" वह मोची मूर्ख था क्योंंकी ,उसे जब फायदा हो रहा था,तो उसे उपकार समझकर वह मूर्ख ,लगे हाथ पूजा पाठ से देवी के कार्य का प्रतीउपकार ही करणे लग गया।इसी कारण उसके साथ ऐसा हूआ।"
यह बाते सूनकर बेताल बोला ,"राजा तूम ही इस मनुष्य लोक मे धर्मदेवता कहे जाने के काबिल हो।मै मरने के बाद भी धन्य हूआ।पर तूमने न बोलने की शर्त तोडी,तूम अपना अट्टाहास छोडो ।बाकी मैं तो चला।"
और फीरसे एक बार बेताल स्मशान मे स्थित बरगद के पेड पर शव बनकर लटकता गया।
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