शुक्रवार, १५ मार्च, २०१९

विक्रम बेताल कथा , क्रूद्ध देवी

  विक्रम बेताल कथा,क्रूद्ध देवी

 फीरसे एक बार राजा जंगलोसे होकर स्मशान पहूचा।उसने बरगद के पेडपर से शव निकालकर अपने कंधेपर लेकर चलता बना।राजा विक्रम को चलता देख शव मेंंसे बेताल बोल पडा,
"हे विक्रम राजा,समझ मे नहींं आता। तूम आधी रात को आराम करणा छोड, यह क्यांं उद्योग कर रहे हो।ऐसी कौनसी देवता को तूम संतुष्ट करवाना चाहते हो।सत्य तो यह है,कि मनुष्योके भक्ति से कयी बार देवता गुस्सा भी होते आएंं है।फीर भी बिना कारण तूम कष्ट क्यूं लिए जा रहे हो।"
       विक्रम राजा को  चूप चाप देखकर,बेताल ने 'क्रूध्द देवी' की कहाणी सूनानी शूरु की।
       एक बार यम के किंकर एक पापी को नरकलोक मे सजा दे रहे थे,पापी को किलोंपरसे चलवाया गया,तपती रेत पर चलवाया गया और तपती धूप मे उसे छोडकर वह चले गये।आकाश मार्ग से स्वर्ग जा रही एक देवी यह देख रही थी।उससे पापी का वह दर्द देखा न गया।वह नरकलोक उतरी और पापी के पैरोंंमेसे अपने हाथोंसे देवीने किंंले निकाले।पापी का दर्द तो कम हूआ,पर देवी के हाथ काले रंग के हो गये।उसने अपने हाथ धोयेंं। और भी बहूत कोषीषे की पर हाथ कालेंं के कालें ही रहे।
      जब यह बांंत देवी देवताओंंके राजा इंद्र को मालूम हुयी।तब उसने देवीको हात काले होनेका कारण पूंछा,तो देवीने नरकलोक की बात ,सारी इंद्र को सुनायी।और हाथोसे काला रंग निकालनेकी इंद्र से बिनती करने लगी।उसपर इंद्र ने कहा,"देवी यह तुम्हारे हाथोंंपर लगा हूआ कालारंग नरकलोक का मैल है,तुमने यम द्वारा पापीयोंंको दिये जाने वाले दंड मे रूकावट की ,इसीकारण ऐसा हूआ।अब तूम्हे प्रायश्चित करणा होगा ,तब यह काला रंग अपनेआप निकल जाएंंगा।"
      देवी यह सूनकर ,इंद्र से प्रायश्चित्त पूछने लगी।तब इंद्र ने कहा,"देवी तूम्हेंं मानवलोक रहकर इन्ही काले हाथोंंसे मोची की चप्पलेंं सिलवानी होगी,जब हजार चप्पले इन हाथोंंसे सियी जाएगी तब यह काला रंग निकल जाएगा,और तूम स्वर्ग आंं सकोगी।"इसपर...
      देवी मानवलोक आयी,उसने एक गरिब मोची के घर गुप्तरूप मे पनाह ली।रात के समय मोची के घर ,जीस कमरेंंमे वह चप्पले बनाया करता था ,वहांं पडे चमडे,धागे और औजारोंंसे देवीने सूंदर चप्पले बनायी और गुप्त होंं गयी।
       सूबह जब मोची उस कमरे मेंं आया तो वह हैराण हुआ,क्योंंकी वहांं सारे चमडे की अच्छी अच्छी चप्पले तयांंर थी।वह चप्पले मोची बाजार ले गया ।उसे उन चप्पलोंं को बेचकर बहूत धन मिला।उसने और चमडांं खरिदा। और उसी रख दिया।
       रात के समय देवी ने पूरे चमडेकी अच्छी अच्छी चप्पले सिलवायी, और वह गायब हो गयी।
       मोची ने जब यह चमत्कार फिरसे देखा तो वह बहूत खूश हूआ।अब ऐसा हर रोज हो रहा था।उसका धन उन चप्पलो से रोज बढता गया।मोची हररोज चमडा,धागा लाकर रख देता था और सूबह तैयार चप्पले बाजार जाकर बेचता था,वह अच्छा धनवान हो गया था।
      एक दिन मोची ने सोचा, जब देवीदेवता ने मूझे इतना सब दिया,तो मूझे भी देवता की क्रूतज्ञता करनी चाहीये।उस दिनसे उसने पूजाद्रव्य,चंदन,पुष्पहार, पुष्प,तांबूल,नैवेद्य से जहांं चप्पले बना करती थी ,वही पूजा करवानी शूरु की।
       जब देवी ने पूजा स्विकार नही की,ऐसा देख कर मोची परेशान हुआ।उसने देवीकी और बढीया पूजा करणी शूरू की।इसबार बाकी पूजा सामग्री के साथ मोची ने दक्षिणा,नये वस्त्र आदी देवीकी पूजा मे अर्पण करके जोरोजोरोसे प्रार्थना की,"एक ही बार क्यों न हो ,पर मेरी पूजा स्विकारो"।
       मोची की इन बातो से देवी उब गयी,और उसकी ही पूजा बढनेके कारण उससे क्रूध्द होकर ,उस मोचीका घर छोडकर चलीगयी।
        देवी अब दूसरे मोचीके वहां गयी वहापर उसने,चप्पले सिलवायी और देवीकी हांथोसे हजार चप्पले बनी। तब देवीकी हांथो से काला रंग निकल गया,और वह स्वर्ग चली गयी।
         इधर पहला मोची बहूत ही दूखी हूआ।उसके यहा देवी द्वारा चप्पले बननी बंद हो गयी थी।वह चिंता कर रहा था की,देवीने पूजा कबूल नही की।और आखिर मूझसे गलती क्या हुयी,यह सोच सोच कर वह बिमार रहने लगा।उसने खटीया पकड ली,और एक दिन वह मर गया।
     यह कहाणी सूनाकर बेताल ने राजासे पूंछा की,"आखिर देवी ने पहले मोची के साथ ऐसा दूर्व्यवहार क्यूं किया?,मोची सेआखिर क्या गलती हूयी? जिसके कारण उसकी पूजा को देवी ने छूआ तक नही? उसे बेहाल करके छोड दिया।"
      "वह मोची गरिब था।इसी कारण देवी उसके घर रूकी,जब देवीने उसका कल्याण किया तो उसके मन मे क्रूतज्ञता आना भी स्वभाविकही हूआ।फिर देवी ने ऐसा क्यूं किया?"बेताल सवाल करणे लगा।
        इसपर राजा विक्रम ने कहा,"वह देवी किसीपर उपकार करणे नही आयी थी।वह अपना प्रायश्चित करणे आयी ,और चली गयी।"
       " वह मोची मूर्ख था क्योंंकी ,उसे जब फायदा हो रहा था,तो उसे उपकार समझकर वह मूर्ख ,लगे हाथ पूजा पाठ से देवी के कार्य का प्रतीउपकार ही करणे लग गया।इसी कारण  उसके साथ ऐसा हूआ।"
      यह बाते सूनकर बेताल बोला ,"राजा तूम ही इस मनुष्य लोक मे धर्मदेवता कहे जाने के काबिल हो।मै मरने के बाद भी धन्य हूआ।पर तूमने न बोलने की शर्त तोडी,तूम अपना अट्टाहास छोडो ।बाकी मैं तो चला।"
      और फीरसे एक बार बेताल स्मशान मे स्थित बरगद के पेड पर शव बनकर लटकता गया।
   
     

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रविवार, १० मार्च, २०१९

कूरूप राजपूत्री और सेवा,उपकार का फल

कूरूप राजपूत्री और सेवा का फल

राजनंद राजा के राज्य शासन मे एक  सरहद के पास जंगलो मे एक जादूगरणी रहा करती थी ।जिसका नाम जगताई था ।एक बार राजनंद राजा और रानी कमला रथ पर सवार जंगलो मे सैर कर रहे थे ।रानी कमला के पेट मे गर्भ था।जंगल मे अचानक उनके रथपर चिता कूद पडा।जब तक राजा ने चितेको मारा तबतक रानी बहोत घायल हो चूकी थी।इस वजहसे रानी को जंगल मे ही प्रसव पीडा होने लगी।राजाने जंगल मे सहारा देखना चाहा तो उसे वह जादूगरणी जगताई की झोपडी दिखायी दी।वहा पर जादूगरणी जगताई ने रानी का प्रसव करवाया, राजा को राजपूत्री हूयी पर रानी प्रसव के बाद जिंदा न रह सकी।राजा अपनी राजपूत्री को राजमहल ले गये पर वह लडकी बहोत ही कूरूप थी।राजा ने अपनी प्रतिष्ठा के बारे मे सोच कर राजपूत्री को महल के अतःपूर कैद करके नौकरोद्वारा उसका लालन पालन, खाना इ.का प्रबंध करवाया ।वह उसी अतःपूर मे बडी होती रही।पर उसे बाहर जाने आनेपर पाबंदी लगवायी गयी थी ।
       पर जादूगरणी जगताई को राजपूत्री पर जन्म से ही बडा स्नेह था।वह हमेशाही उससे मिलने अपनी जादूयी टोटकोसे जाया करती थी ।उसे राजपूत्री से बडाही लगाव हो चूका था।
       इधर एक दिन जादूगरणी जगताई के झोपडी के पास एक यूवक आया जिसका नाम सुयश था ।सूयश बहोत दूरके गावसे आया था।और बहूत प्यासा था।वह राजनंद राजा के राज्य मे कोई नोकरी करने की इच्छा से आया था।उसने आवाज लगाया की,"घरमे कोइ है!"तब बूढी
 जादूगरणी जगताई बाहर आइ।तब सूयश ने पिनेके लीए पानी मांगा और राजधानी का रास्ता पूछने लगा।इस पर जादूगरणी ने कहा कि "राजधानी जाते-जाते तूम्हे आधी रात हो जाएगी, इसकारण तूम मेरे यहा रूक जाव और सुबह होते ही राजधानी की ओर निकल जावो।उसकी बाते सूनकर सूयश वही रूका ।जादूगरणी ने  उसे बहोत अच्छा खाना खिलाया ।सूयश उसे दादी कहने लग गया उसने अपने बारे मे सब कुछ कह डाला।सूयश का दुनिया मे कोई न था।वह पढाई के बाद कूछ काम करके उदरनिर्वाह किया करता था।पर बेरोजगारी के कारन गाववालोके कहनेपर वह धन धान्य से संपन्न राजा राजनंद की राजधानी मे नौकरी करने के इरादेसे राजधानी जा रहा  था ।यह बाते सूनकर जादूगरणी जगताई बोली की ,"राजधानी मे तूम नौकरी क्यूं! तूम तो राजा बनने योग्य हो,बस किसी की सेवा अथवा उपकार कभी भी न भूलना!"दूसरे दिन जब सूयश निंदसे जागा तो उसे कूछ दिखायी न दिया वह अंधा हूआ था ।तभी उसने जादूगरणी को पूकारते हूये अंधे होनेकी बात कही इसपर जादूगरणी ने उसे बताया की, "मेरि एक पोती है जो आयुर्वेद जानती है ।उसे मै बूलावूंगी तब तूम ठिक हो जावोगे तबतकआराम करो!"यह कहकर जादूगरणी जगताई वहासे निकल गयी।
     जादूगरणी जगताई अपने जादूयी  टोटकोसे राजपूत्रीसे मिलने राजमहलमे अतःपूर गयी।साथ मे एक पिंजरे मे तोते को भी ले गयी थी।वहा राजपूत्री को तोता बहोत पसंद आया ।राजपूत्री ने कहा कि,"दादी मूझे यह तोता दे दो मै इसके लिए सोणेका पिंजरा बनवावूंगी इसके लिए बढीया खाना दूंगी!"पर जादूगरणी ने समझाया की नही यह बंद पिंजरा इसका जिवन नही है ।सिर्फ बंद कमरा और खाना यह किसीका जीवन नही हो सकता, प्रत्येक प्राणी को स्वतंत्र जीवन आवश्यक है।और जादूगरणी ने पिंजरे से तोते को छोड दिया।वह तोता खिडकी से बाहर निकलकर स्वतंत्रतासे उडताहूवा जंगलो की और चला गया ।तोते को देख कर और जादूगरणी की बाते सूनकर राजपूत्री के मन मे भी अपने जीवन के प्रति स्वतंत्रता के विचार जाग पडे ।जल्दी ही जादूगरणी ने राजपूत्री को तोता बनाकर पिंजरे मे बंद किया और जादूसे अपनी झोपडी के पास आयी।यहा उसने तोते को फिरसे राजपूत्री बनाया।राजपूत्री को अंधे सूयश के सामने ले जाकर राजपूत्रीके हाथो मे एक लेप देकर सूयश के आखो पर लगानेको कहा।सूयश समझ रहा था कि लेप लगाकर सेवा कर रही लडकी बूढीयाकी पोती होगी ।ऐसी सेवा तीन दिन करनेके बाद सूयश ने बूढीयासे पूछा कि,यह तुम्हारी पोती कहा रहती है, उसके पिता क्या करते हैं ।इसपर बूढीयाने जवाब दिया, "मेरि पोती का मेरे सिवा और कोइ नही है।वह जंगलो मेसे औषधीया खोजती रहती है ।और जंगलो मे ही रहा करती है।इस कारन उससे शादी लायक कोइ वर भी तो नही मिला आजतक!"यह कहकर जादूगरणी चूप हूयी।पर यह सूनकर सूयश ने बूढीयासे कहा, "दादी तो फिर मै ही तुम्हारी पोती से शादी करूंगा ।उसीने मेरी इतनी सेवा की है!", "चाहे मूझे जीवन भर जंगलो मे ही रहना पडे!"
       दूसरे दिन बूढीयाने अपनी जादूसे सूयश की आखे ठिक कर दी।सूयश ने यह बात बूढीयाको बतायी क्योंकी वह बूढीयाकी जादूगरणी होने की बात नही जानता था। और बूढीयाकी पोती की राह तकता रहा।जब राजकुमारी वहा आयी तो सूयश आनंदीत हूआ पर उसकी कूरूपता को देख कर वह शंका से घिर गया।पर आखिर उसने ठान ही लीया की,जिसने मेरि इतनी सेवा की, वही लडकी मेरी जिवनसंगनी बनेगी।
       यह सब देख रही बूढीयाने सूयश के सामने ही मंत्र उच्चार करके राजपूत्री की कूरूपता सुंदरता मे बदल डाली।यह देख सूयश अचंबित हूआ ।फिर बूढीयाने दूसरे मंत्र उच्चार कीये तो वह तिनो राजनंद राजा के सामने जहा दरबार लगा हूआ था वहा पहूचे।
        बूढीयाने राजा को उसकी वह लडकी दिखायी जो कूरूपता से अब सूंदर हो चूकी थी।राजा भी हैरान हूआ।उसने अपनी पूत्री को कूरूपता के कारण कैद रखा था इसबात पर उसे भी पश्चात्ताप हूआ।उसने सूयश और राजपूत्री का विवाह करवाया और संन्यास लेकर जंगल चला गया।सारा राजपाट अपनी पूत्री और सूयश के हाथो सौप गया।राजा के जाने के बाद जादूगरणी जगताई भी उन दोनो को आशिर्वाद देकर जंगल मे अपनी झोपडी की और चली गयी।

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