रविवार, २ जून, २०१९

BETAL PACHCHISI last story 25th

     बेताल पच्चीसी last story 25th " BETAL PACHCHISI"

      बेताल पच्चीसी (बेतालपञ्चविंशतिका) पच्चीस कथा से युक्त  है। इसके रचयिता बेतालभट्ट  हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।राजा विक्रम उज्जैन देश का राजा था वो एक योगी तांत्रिक के कहने पर बेताल को मसान में स्थित पीपल के पेड़ से उतारकर योगी के पास लाने के लिए जाता था लेकिन बेताल भी कम चालाक नहीं था,वो बार-बार राजा के बंधन से छूट और राजा को शर्त हराकर वापस पेड़ पर जा लटकता था।ऐसे चोबीस बार बेताल को राजा विक्रम न ला सका।
    पच्चीसवी बार विक्रमने बेताल को आखिर योगी तांत्रिक के सामने लाया। राजा विक्रमको और मुर्दे( बेताल )को देखकर योगी तांत्रिक बहुत प्रसन्न हुआ। बोला, "हे राज तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है, तुम सचमुच सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।"इतना कहकर उसने मुर्दे को राजा विक्रमके  कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलो की मालाओं से सजाकर रख दिया। फिर बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की  और राजा से कहा, "हे राजन्! तुम सिर झुकाकर प्रणाम करो।"राजा को बेताल की बात याद आ गयी। उसने कहा, "मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी को सिर नहीं झुकाया। आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए।"
     योगी ने जैसे ही सिर झुकाया, राजा ने  उसका सिर काट दिया। बेताल खुश हुआ। बोला, "राजन्, यह योगी विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। तुम जो चाहो सो माँग लो।"
       राजा ने कहा, "अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें  पढ़े।"
      बेताल ने कहा, "ऐसा ही होगा। ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से  होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।" यह कहकर बेताल चला गया। उसके जाने के बाद शिवजी ने प्रकट होकर कहा, "राजन्, तुमने अच्छा किया,  इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर राज्य स्थापित करोगे।"  इसके बाद शिवजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा श्मशान से नगर में आ गया। कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गया और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करता रहा।

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BETAL PACHCHISI Story6 (patni kiski?)

पत्नी किसकी ? बेताल पच्चीसी

    राजा विक्रम छठी बार उस अंधेरी रात मे बेताल को लेकर योगी के पास लाने निकला ,मायावी बेताल ने फिरसे विक्रम को शर्त दिलाई की,अगर रास्ते मे तूम कूछभी बोले तो मै भाग जाउंगा, बेताल की फिरसे वही शर्त मानकर विक्रम अपने कंधेपर बेताल को उठाकर चल रहे थे। 

    बेताल ने   छठी कहानी सूनानी शूरू की,धर्मपुर में धर्मशील नाम का राजा राज करता था। उसका अनधक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा, “महाराज, एक मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा!"राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा को सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा। देवी बोली, "अच्छी बात है, तुझे बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।"कुछ दिन बाद राजा को एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी।ऐसा चमत्कार सूनकर लोग भी देवीसे मंनते, प्रार्थना करने लगे।
       एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया। उसकी निगाह देवी के मन्दिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, "हे देवी! यह लड़की मुझे मिल जाय। अगर मिल गयी तो मैं अपना सिर चढ़ाकर मंनत पूरी कर दूँगा।" इसके बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह भी हो गया, मंनत पूरी हूयी। 
     विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया। मित्र को साथ लेकर दोनों पती पत्नी चले ,रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो लड़के को अपनी मंनत याद आ गयी। उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया। देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।      
       उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, "मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।" स्त्री बोली, "हे देवी! इन दोनों को जिला दो।" देवी ने कहा, "अच्छा, तुम दोनों के सिर मिलाकर रख दो।"   घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिला दिया। 
       अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी स्त्री मेरी है।           
       बेताल बोला,     "हे राजन्! बताओ कि यह स्त्री किसकी हो?" 
      विक्रम राजा ने कहा, "नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।" इतना सुनकर   बेताल ने कहा कि तूमने सही जवाब दिया, सचमे तूम एक न्याय प्रिय, कर्तव्यदक्ष, प्रजाहीतदक्ष और समझदार राजा हो,और इसी कारण तूम्हारा राज्य,प्रजा सुखी, संतुष्ट है,पर राजा विक्रम तूम तो मेरी शर्त हार चूके क्योंकी तूम्हे न बोलनेकी शर्त रखी गयी थी सो मै तो अब चला! ऐसा कहकर बेताल  उडने लगा और पेडपर जा लटक गया. 

अन्य कहाणीयाँ,
https://kathabharatindia.blogspot.com/2019/03/Vikram-betal-katha.html

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